Sunita gupta

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लेखनी कहानी -17-Sep-2022

रात भर आज बरसात होती रही,
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रात भर आज बरसात होती रही,
पर बदन मेरा सूखा है भीजा नही।
पूरी बरसात भर यूंँ  मैं रोती रही,
पर कन्हैया का दिलतो पसीजा नही। 

दिलमें आना नही तो बुलाते हो क्यों,
दर्द देकर के मुझको रूलाते हो क्यों,
दूर  से  देख कर  मुस्कुराते  हो क्यों?
अपने जैसा मुझे फिर बनाते हो क्यों? 

आप निष्ठुर बने रहते दिल के बड़े,
आपने अपने दिलबर को मीजा नही।
पूरी बरसात भर यू,,,,,, 

मैं तुम्हारे लिए क्यों तड़पती रहूं,
मैं तुम्हारे लिए क्यों भटकती रहूं,
देते दर्शन नही क्यों दहकती रहूं,
मैं तुम्हारे लिए क्यों तरसती रहूं, 

लाज मेरी बचाना नही आपको,
आपका दिल अभी तकजो सीजा नही।
पूरी बरसात भर यू,,,,,, 

बोलो कबतक मुझे यू रुलाओगे तुम, 
बोलो कबतक मुझे यू सताओगे तुम, 
बात अपनी नही अब निभाओगे तुम, 
बोलो कबतक मुझे न मनाओगे तुम, 

जो "सुनीता"को ऐसे ही तरसाऐगा,
ठीक तेरा भी होगा नतीजा नही
पूरी बरसात भर यू,,,,,,, 

सुनीता गुप्ता कानपुर

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4 Comments

Suryansh

21-Sep-2022 10:42 PM

बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना

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Supriya Pathak

17-Sep-2022 11:19 PM

Achha likha hai 💐

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Reena yadav

17-Sep-2022 11:51 AM

👍👍

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